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राष्ट्रचिंतन – राष्ट्र प्रथम

काला तमका अंधियारा ए, दशोदिशामे छाया है,
राष्ट्र सुरक्षित करणे हेतू, राष्ट्र प्रथम यह नारा है..

संविधानकी गरिमाकोभी, कलंकीत ए क्यो करते है,
अपने निजी स्वार्थ भावसे, क्यो देश विभाजन करते है..

अंतस्थलसे द्वेषभावसे, इनकी सारी गतिविधीयां,
देश तोडने दुष्ट भावसे, इनका है व्यवहार सदा..

न इनको कोई भय लगता है, असत्य सारा कहते है,
देशविरोधी विचार सारा, राष्ट्रहितको त्यजते है..

राजपाटका मोह निरंतर, मुल्योका अभिसरण नही,
सत्ता, वैभव, कांचन कांक्षा, नितीका अनुसरण नही..

लोकतंत्रमे शोषण करने, करते धनका दुरूपयोग सदा,
देशभक्तको दंडीत करने, सत्य प्रताडीत सदा सदा,

कितने इनके छोटे मन है, ऋषिमुनियोंका सम्मान नही,
अश्वेत सारे कर्म सदाही, सत्यवचनका अभिमान नही..

कंस दशासन हिरण्यकशपु, दुश्र्चमोकी अतिघोर निशा,
पुनश्च ऊनका स्मरण कराने, करते है दुरव्यवहार सदा..

कबसे भारतमाता दु:खी, उसका इनको स्मरण नही,
अपने हितमे लिप्त सदाही, देशधर्मका सन्मान नही..

ईन्हे सदाही अपनी सत्ता, धनसे इनका प्रेम सदा,
राष्ट्रभावना कैसे जागे, स्वार्थ भावको स्थान सदा..

कुकर्म सारे स्वार्थ सदाही, जनपर अत्याचार सदा,
घृणास्पद है इनका आचरण, इनहे राष्ट्रका प्रेम कहा..

कब जागेगी मनमे इनके, राष्ट्रभक्तिकी ज्योत प्रखर,
कब त्यागेंगे दुर्व्यवहार और, वंदन करके राष्ट्र प्रथम….

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