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राष्ट्रचिंतन – राष्ट्रप्रथम

काला तमका अंधियारा अब, दशोदिशामे छाया है
राष्ट्र सुरक्षित करने हेतू, राष्ट प्रथम यह नारा है || १ ||

संविधानकी गरिमाकोभी, कलंकित क्यो करते है |
अपने निजी स्वार्थभावसे, देश विभाजन करते है || २ ||

अंतस्थलसे द्वेष भावसे, इनकी सारी गतीविधियाँ |
देश तोडने दुष्टभावसे, इनका है व्यवहार सदा || ३ ||

इनको कोई भय नही लगता, असत्य सारा कहते है |
देशविरोधी विचार सारा, राष्ट्रहितको त्यजते है || ४ ||

राजपाटका मोह निरंतर, मुल्योंका अभिसरण नही |
सत्ता-वैभव-कांचन-कांक्षा, नितीका अनुसरण नही || ५||

कितने इनके छोटे मन है, ऋषिमुनियोका सम्मान नाही |
कृष्णकर्म है सारे इनके, सत्यवचनका अभिमान नही || ६ ||

कंस दशानन हिरण्यकशपू, दुष्कर्मोकी अतिघोर निशा |
अभद्र सारे घोर भयानक, करते पापाचार सदा || ७ ||

कबसे भारतमाता दु:खी, मातृभूमिका स्मरण नही |
अपने हितमे लिप्त सदाही, देशधर्मका सम्मान नही || ८ ||

इन्हे सदाही अपनी सत्ता, धनसे इनको प्रेम सदा |
लोकतंत्रमे शोषण करके, धनका है अपहार सदा || ९ ||

राष्ट्रभावना कैसे जागे, स्वार्थ भावको स्थान सदा |
कुकर्म सारे स्वार्थ सदाही, जनपर अत्त्याचार सदा || १०||

घृणास्पद है इनका आचरण, इन्हे राष्ट्रका प्रेम नही |
अपने सारे सगेसमंधी, दौलत शोहरत काम यही || ११ ||

कब जागेगी मनमे इनके, राष्ट्रभक्तिकी ज्योत प्रखर |
कब त्यागेंगे दुर्व्यवहारको, वंदन करने राष्ट्र प्रथम || १२ ||

|| मुकुंद भालेराव ||
|औरंगाबाद | १९ जानेवारी २०२१ |

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