कुणी एक कन्या | झाली ती जागृत |
केले कांही वक्तव्य | नकळत || १ ||
तिचे नव्हे ते खचित | दुसरे कुणाचे |
होते कांही शब्द | भयंकर || २ ||
वापरली तिने | सर्व सर्वनामे |
विशेष नावांचे व्यर्थची | कावले || ३ ||
मनी तिच्या नव्हते | भयंकर कांही |
सामाजिक चीड | दिसतसे || ४ ||
रागावले सारे | भक्त ते त्यांचे |
धावले अकस्मात | तिच्यावरी || ५ ||
कोवळे ते वय | केली टीका तिने |
जाहले संतप्त | वयोवृद्ध || ६ ||
कुठे गेली त्यांची | सारी सहिष्णुता |
धाडधाड पोलिस | पाठविले || ७ ||
चूक तिने केली | असे ती निश्चित |
कायद्यात कृत्य | बसवेना || ८ ||
शाहू आंबेडकरांचा | असे महाराष्ट्र |
आदर्श शिवबांचा | विसरले || ८ ||
बोळवण केली | साडी चोळी देऊन |
कल्याणच्या त्या | सुभेदाराची || ९ ||
मत स्वातंत्र्याचा | असे हक्क तिजला |
ठाकीयली उभी | मर्दानी || १० ||
केला गुन्हा तिने | एकची असा तो |
धैर्याने सत्य | बोलण्याचा || ११ ||
आले पोलिस तत्काळ | केले जायबंदी |
गेले घेउनी तिजसी | न्यायालयी || १२ ||
पुसे ती स्पष्टपणे | माझा अधिकार |
घटनेने प्रदत्त | गेला कुठे || १३ ||
आता म्हणे पोलिस | करणार तपास |
शोधणार धनी | बोलविणारा || १४ ||
लाभो त्यांना यश | सापडो तो दुवा |
तरीही हरतील निश्चित | न्यायालयी || १५ ||
अरे ! किती हे दुबळे | तुमचे अंत:करण |
त्रुणाङ्कुरे क्षते | होती तुम्हा || १६ ||
लोकांचेच पैसे | खर्चिता खचित |
करता दुरुपयोग | स्वार्थापायी || १७ ||
समाज पुरुष | असे शांत चित्त |
पाहतसे नित्य | क्रूरकर्म || १८ ||
देवचिये दरबारी | नसे कधी विलंब |
पापपुण्य हिशोब | चोख असे || १९ ||
भरता शंभर | पातके पाप्यांची |
शिशुपाल वध | सुनिश्चित || २० ||
नको पाहू आता | वाट श्रीहरी |
हरी दैन्य अन्याय | सत्वरे || २१ ||
धर्माचा उच्छाद | वाढली ती पापे |
झाला त्राही त्राही | समाज || २२ ||
थांबतो मी देवा | आता त्रिविंशती |
दे सदबुद्धी त्यांना | आता तरी || २३ ||
मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजीनगर / २४-०५-२०२२ / सकाळी : १०:१२