हररोज कि तरहा, उस सुबह भी
बापुकी समाधीपर, दो अश्क१ फिर गिरे………
सुरजके आनेसे पहले, फुलोंकी मालाये,
वैसेही सजायी गयी, रंगबिरंगोकी आभा,
समाधीपर छा गायी……..
वैसे तो हर दिनकी तरहा, बहोत सारे लोग आए,
बिना कोई लब्जके२, सरको झुका गए………
आजभी एक शख्स3 आया, आंखोमे नमी थी,
चेहरेपर उदासी थी, माथेपर शिकन४ थी…………
कुछ तो कह रहा था, कुछ तो मांग रहा था,
कहता था कोई दोस्त, परेशान है बापू………
झुठे कई सारे, इल्जाम५ लगाये है,
बेचारे मासूम पर, गजब६ बरसाये है……..
रिंदपेशा७ तो नही है, राहबर८ जरूर है,
बच्चोका राह्नुमा९, बडा दिलवाला है……..
शराबे खानाखराब१०, न जाने लोग क्यो कहते है,
शराबे तहूर११ का, तलबगार१२ जरूर है………..
सुनकर यह हकीकत, बापू खयालोंमे खो गये,
अच्छा किया गोडसेने, मेरे रुह्को१३ आजाद किया………
अगर मै रहता जमींपर, तो शायद मुझे ए,
मरने नही देते, रिश्वतकी लालचसे,
‘बापु-मैखाने’१४ खोल देते……….
बेशरम बेहाया तू, झुठे आंसू मत बहां,
रिंदेबलानोशोंका१५, राहनुमा मत बता…….
गैरोन्के पापोन्को तू, सरपर उठाके चल रहा,
बेअकल तू बेवकूफ, खुदको मर्कदमे१६ डाल रहा ………
बस कर अभी यह, बेसबब झुठी कहानी,
ढून्ढ खुद्के जमीरमे, सच्चाईकी रोशनी………
यही वक्त है नादान, राहजनी१७ छोडने कां,
लम्हां१८ लम्हा रोशनीको, राहनवर्द१९ बननेका………
अगर तेरे जमीरमें२०, थोडीसीभी शरम है,
सुन मेरी सिसकियोंको२१, वरना तू आंसू न बहा…….
वादे कई किये थे, आम आदमीके सहारे तू,
अगर रास्ता न बदला तो, बन जाएगा सिफर२२ तू…………
अल्फाजोन्का मतलब: (अल्फाज – शब्द, मतलब – अर्थ )
(०१) अश्क-आंसू (०२) लब्ज–शब्द (०३) शख्स–इन्सान
(०४) शिकन–झुरीयां (०५) इल्जाम–आरोप (०६) गजब–जुल्म
(०७) रिंदपेशा–शराबी (०८) राहबर–पथप्रदर्शक (०९) राह्नुमा–मार्गदर्शक
(१०) खानाखराब–अभागा (११) तहूर-निर्मल (१२) तलबगार-इछुक
(१३) रुह्को-आत्मा (१४) मैखाना–मदिरालय
(१५) रिंदेबलानोशोंका– बहोत ज्यादा शराब पिनेवाला
(१६) मर्कदमे–समाधी (१७) राहजनी-लुटमार (१८) लमहा–पल
(१९) राहनवर्द-मुसाफिर (२०) जमीरमें–अंत:करण
(२१) सिसकियां–रोना (२२) सिफर – शून्य
मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजी नगर / ११ मार्च २०२३ / सुबह: ११:३६