तुझ्यावाचुन देवा | आता करमत नाही |
लागलासे ध्यास | तुझा जीवा ||१||
म्हणे अंतर्यामी | राहतो तू रे |
परी स्पर्श मला | जाणवेना ||२||
मनामध्ये असे | तुझा तो निवास |
सांगसी विभूतीयोगा | गीतेमध्ये ||३||
आळवतो मी | तुला असा निरंतर |
दिसशी तू मज | सर्वांभूती ||४||
मित्र भ्राता भगिनी | जाया पुत्रपौत्र |
सारेच वाटती | रुपे तुझी ||५||
क्षणात मग वाटे | माया ही सगळी |
मग सत्य काय | उमगेच ना ||६||
‘ब्रम्हसत्यंजगत्मीथ्या | वचने धर्मशास्त्री |
परी तूच सांगसी राहतो | चेतनेमध्ये ||७||
चारी वेद अति गहन | ज्ञानाचे ते भांडार |
उपनिषद सोपे | सार म्हणती ||८||
षड्दर्शने वाचली तरी | तरी गोंधळ जाईना |
मनामध्ये प्रश्न | अनेक ते ||९||
नउ असती मार्ग | भक्ती करण्यासी |
सरळ सोपा कोणता | ते कळेचना ||१०||
कुणी म्हणती गुरु | परमपरमेश्वर |
त्याचेविना ज्ञान | असंभव ||११||
गुरुतत्व कोठे | पावावे सहज |
तळमळतो जीव | अंतरात ||१२||
भक्ताचिया ठायी | येतो तू धावून |
भक्त जेथे विनम्र | परमपद तुझे ||१३||
लागल्यासी कळा | अशा अंतर्यामी |
परीज्ञानामृत | प्रसवेना ||१५||
असे माझा दृढ | तुझ्यावरी विश्वास |
कां न मग येशी | धावूनिया ||१६||
कसली तू पाहसी | माझी रे परीक्षा |
अजून किती काळ | तिष्ठविसी ||१७||
लाभो भाग्य मजला | याची देही तुझे |
साक्षात दर्शन | पूर्णरूपे ||१८||
मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजी नगर
दिनांक: २० मार्च २०२३
दुपारी: १२ वाजता