कई दिन भीत गये…
सुरजकी रोशनी नसीब नही हुई,
चमकते जुगनुभी,
रातमे न आए………
बरीशकी फटकारने,
तोहमत तो लायी है,
फसलोकी ताबाहीको,
साथ ले आई है……..
बेवक्त ए तमाशा,
हो ही क्यो रहा है,
पिनेको पानी भी,
कही नही मिल रहा है……….
दुनियाके कोई कोनेमे,
बाढकी कयामत आई है
और कोई जगहमे तो
भुखा पडा है……..
कुसूर नही कोई,
भगवान या किसीका,
गलती है सिर्फ,
गैरजिम्मेदार इन्सानकी,
कर रहे है सादगीको,
जिंदगीसे बेदखल……
सोच सारी बिगड गई है,
ऐय्याशी की नशा,
बरबादीकी ओर बढ रही है,
पुश्तोसे चली आयी,
साद्गीको बेदखल,
करके चल रहे है,
आनेवाली नसले की,
नही कोई फिकर……..
खुदा भी क्या करेगा,
नादानोंका बचानेको,
कैसा समझायेगा,
गुंगे और बहिरे,
अहसानफरामोशोको……….
मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजी नगर
१७ मार्च २०२३
शाम १९:४३