ख्वाबमे आती नही
आनेपर रुकती नही,
आनेको देरी करती हो
जानेकी इतनी जल्दी क्यों………
मैखानेमे जाता नही हुं
न साकी कि जरुरत है,
बस तेरी याद ही काफी है
तनहाईमें खुदको संभलनेके लिये………..
अजीब है दास्तां ऐसी ए
क्या बयां करू इसे मे,
सब कुछ लगता है अपनासा
मगर हर मुकाम है खंडहर……..
अब जाने दो इस काली रातको
क्या फिर उसे उजागर करना है
ना लौटा सकती है वो बाते चमनकी
बहार आये भी तो क्या करना है……
© मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजी नगर
दिनांक: २४ एप्रिल २०२४
समय: १८:२१