कौन कहता है कि
उम्र अब ढल गई
रोशनी तेरे चेहरेपर अभी
वैसेही बरकरार है………..
हां यह सच है की
कई साल बीत गये मगर
क्या फर्क पडता है
उससे जानम
नजदीकीयां तो वैसेही है……..
बाते कम हुई होगी
मिन्नते कम हुई होगी
फिरभी सच तो यही है
कि मोहब्बत बेहिसाब है…………
अब देखनेसेही कई बाते
दिलमे उतर आती है
लब्जोकी कोई जरुरत
महसूस अब होती नही…………
खयांलोकी खुशबु अभी
हरपल महकती रहती है
रंगोकी जरुरतही क्या
हरपल यहां बहार है…….
हां यह सच है कि
बरखा उमडनेका
कोई मौसमभि होता है
मगर दिलमे तो तुम्हारी
हर पल बरखा है…………
रोशनी बेहिसाब है तो
जुगनू कि क्या बात है
चांद आसमान मे हो या ना हो
रोशनी तुम्हारी तो बरकरार है………
मिले है सुर हमारे सदियोंसे
रंगोकी बरसात तो रुकी नही
साजोंकी कोई जरुरत ही क्यां
तेरी हर बंदीश सुहागन है………..
वचन मे सदा है खुशबुके रेले
नजदीकीयोंके सुरीले है मेले
इश्क है इबादत खुदाभी गवांह है
न वादोंकी जरुरत हमे
कस्मे तो बरकरार है……….
(c)मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजी नगर
दिनांक: २७ जून २०२३
सुबह: ०८:५०