अंधेरा घना हो चला हर तरफ है,
सुरजकी रोशनी तितर बितर हो रही है,
घने बादलोंकी बडी भारी भीड है
न आशा न कोई और उम्मीद नही है…………
माहोल सारा घना हर तरफ अंधियारा,
मजहबके नाम पर ऐय्याशियां है,
सियासतकी सब तरह करते है फरोशी१
न काम करना कोई यहां चाहता है………..
सब चाहते है सबकुछ फोकटमें लेकीन,
तकलीफ नही और मेहनत न कोई,
हर कोई चाहता है अपने नुमाईन्दे,
रिश्वतकी ताकदसे हो गये है सब अंधे……..
वतन और विरासत भूल सब रहे है,
मां बापके नसीहत२ भूल सब गये है ,
ऐश और आराम बस यही है मकसद,
गैरोन्के कामोमे बेवजह रुकावट……….
अपनी जिंदगीमें कमाया कुछ नही है,
वालीदकी३ दौलतपर शौक चल रहे है,
कमाई धेलेकी करता कोई नही है,
मगर सबने सलाम करनेकी आरजू………
सफेद-पोश लिबास शौक है ए भारी,
कलाईमें सोनेकी घडी चाहिये भी,
कमाना कुछ नही गाडी हर मुकामपर,
पैरोपे चलनेकी इनको शरम ही शरम है…….
इर्दगिर्द दो चार बंदे हर कदम पर,
‘जीं हां जीं हां’ सबके होना जुबां पर,
कोई न इनको पुछता कहीं पर,
फिरभी शौक मुसलसल४ इनके दिमाग पर…..
आगे क्यां करेंगे कुछ पता भी नही है,
हर सुबह शाम बस नुमाईशी५ हर पल,
आमदनी अधेली और शौक शहेनशाही,
फांको पर फांकें६ मगर शौक बादशाही………..
ऐसे जवान गर हर तरफ रहेंगे,
तकदीरमें इनके अंधेरे रहेंगे,
खिचावट७ न इनको अपने अजीजकी८,
न कोई फिक्र है अपने वतनकी………..
© मुकुंद भालेराव
छत्रपती संभाजीनगर
तारीख: २९ एप्रिल २०४
वक्त: सुबह: १०:४०
Difficult Words:
१ = फरोशी = Sale / Marketing
२ = नसीहत = Advise
३ = वालीदकी = Father
४ = मुसलसल = Continuous
५ = नुमाईशी = Showy, Dandy
६ = फांको पर फांकें = Poverty
७ = खिचावट = Attachment
८ = अजीज = Dear