अंधेरा घना हो चला हर तरफ है, सुरजकी रोशनी तितर बितर हो रही है, घने बादलोंकी बडी भारी भीड है न आशा न कोई और उम्मीद नही है………… माहोल सारा घना हर तरफ अंधियारा, मजहबके नाम पर ऐय्याशियां है, सियासतकी सब तरह करते है फरोशी१ न काम करना कोई यहां चाहता है……….. सब चाहते है […]
Month: April 2024
सिफर
सिफर१ बन गया हू इसलिये मै खुश हू, अब न कोई चाहत है अब बन गया हु आजाद२ मै…………. न गुस्सा किसीसे न कशिश३ न कोई, न ख्वाईश४ बची है पाना न कुछ भी………. ना बैर अब किसीसे बद-जनी५ ना किसीसे, रफ्तार अंदामकी६ आहिस्ता७ तवक्कुफ८…….. अब जरुरत ही क्या इबादत-गह९ जानेकी, खुदाकी इबादत१० तो अपनेही […]
Emancipation
I am extremely gratified That I have become Zero, All unnecessary attachments Waned away, true…… No anger hugs me, No desire engulfs me No need pushes me To have more, anymore……. Envy went far away And competition ceased, All sensory organs Have serenely calmed……. Now why should I Go to temple every day, I warship […]
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा?
मी शून्य झालो मी धन्य झालो, विरली सर्व माया मी मुक्त झालो……… नसे राग लोभ न इच्छा कशाची, नसे कामना काही मिळवावयाची……… आता द्वेष कसला आणि इर्षा कशाची, गती शांत झाली मम सर्वेन्द्रियांची………. आता नित्य जाणे न मंदिरी पुजाया निजांतरी स्थित हरीसी पुजाया……. मी भजतो हरीला सहस्त्रांश निमिषे, आता शोध कसला कशाच्या निमित्ते………. श्रुती आणि […]
कादिर-ए-मुतलक
बे-खबर१ मनमे सदा डरका माहोल होता है, डरावना युद्ध हरदम करनेका खयाल होता है………. नामुमकीन ख्वाइंशे२ ऐसी और बदतमीज मोहब्बते, ताकदवार सभी है वो डर लगता है उन सबका…….. नंगानाच चले वहां समाज धुधकारता जिसे, मुहब्बत है वहां पर उससे जो ख्वाईशे मुमकिन नही…….. खुदगरज चाहतोंका वहां बोलबाला हरपल वहां, बेशरम तजरुबोंकी सल्तनत३ है वहां……… […]
Mind’s Architecture
Fear is dominating The unconscious mind, It wants to wage A destructive war………. Impractical sexual desires Are rampant there, Always playing its Spell undesirable………. Unethical desires Dance with cruelty, And love for Irrational wishes……. Selfish needs too Unrestrainedly more, Shameless experience Of bad nature prevail…….. Powerful and intoxicated Universe is Unconscious, Superior Subconscious Memories lay […]
मनोरहस्य
अचेतन मनांत आंत भिती असे मनांत फार, विध्वंसक युद्ध सुरु असे उन्मत्त विचार अनंत आंत……… अवास्तव वासना किती प्रबळ मनांत ही तिथे, हैदोस रात्रंदिन तयांचा विक्राळ असे रूप दिसे……… अनैतिक वासनांचेच ते प्रचंड तांडव ही तिथे, अवास्तव इच्छांचे अपार अफाट प्रेमही तिथे……… स्वार्थी गरजांचे अमाप थैमान अथक चालते, निर्लज्ज अनुभवांचे कृष्णकृत्य ही तिथे…….. मदांध असे […]